रखदो चटके शीशे के आगे मन का कोई खूबसूरत कोना ,यह कोना हर एक टुकड़े में नज़र आये गा |

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बुधवार, 12 मई 2010

आपस क़ी बातें

  '' मम्मा ,ये क्या लिख रही है आप ब्लॉग पर ?
''  मैंने रोटी बेलते हुए सहज स्वर में पूछा ''क्यों ,क्या लिखा है ? '' 
"मम्मा जो आपका लेटेस्ट ब्लॉग है ''क्या हुआ जो सड़के नप  गई 
तुम्हारे कदमो से
एक फासला था तय हो गया ख्वाबों में ही सही ''
"अच्छा  वो ,क्यों क्या हुआ पसंद नही आया ?''   
आपको पता है  मम्मा मेरी सब फ्रेंड्स आप की फैन है '' 
 ''तो ?''
 '' तो क्या मम्मा ,वो सब हँस रही थी कि काफी रोमेंटिक लाइने लिखी है आंटी ने ''
"सो तो है ''
"मम्मा  प्लीज ''
मैंने गैस बंद क़ी,मुस्कुराते हुए उसके कंधे पे हाथ रख के पूछा ''क्या खुद से मुखातिब होने के लिए भी मुझे माँ और बीवी 
बनना पड़ेगा ?''
''आइ ऍम सौरी मम्मा  ''और वो मेरे गले में बाहें डाल झूल गई .

2 टिप्‍पणियां:

  1. bahut hi khubsurat kavita hai....ek fasila tha tay ho gaya khabon me sahi......

    meri kavita ki vo LADKI bhi isi smaaj me rahne ko majboor hai jahan fasile KHABON ME hi tay hote hain......

    apki sabhi kavitaen bahut umda hain...congrates....

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  2. aapki kvita aapke comment pdne ke bad jyada smjh aai
    thanks

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