जिस्म तर बतर हैं और शाख है कि टूटती नहीं
इनकी जकड़न से कुछ तो सीखो जबान पे लड़ने वालो
मिट्टी,खुश्बू, हवा और पानी कोई फर्क है और कितना
खून का रंग भी वही है और लाश का वज़न भी उतना
गेहूं की बालियाँ नहीं पूछतीं रोटी पकेंगी कहाँ
तो तुम कौन होते हो इसे तोड़ने और बांटने वाले
सरहद की लड़ाई क्या कम थी कि हम आपस में लड़ने लगे
दो रोटी हम खाते है दो रोटी तुम भी खाते हो
इन उलझे हुए धागों को सहजे से खोलो,खोलने वालो
इल्म ना हो और गांठ भी खुल जाये तो कोई बात है
कलम की धार से खून नही बहता पर असर होताहै
सन चौरासी का क़र्ज़ है,साथ आओ लिखने वालो
waah kya baat hai !!!!!!!!
जवाब देंहटाएंआप ने जो लिखा उसका भाव मुझे बहुत अच्छा लगा
जवाब देंहटाएंमै आपसे कुछ बाते शेयर करना चाहता हूँ
आपने लयबद्ध जो रचना पोस्ट की है वो गजल नहीं है
दरअसल गजल लिखने का कुछ नियम है जिसमे हम बहर काफिया रदीफ़ आदि के निर्वहन को बाध्य होते है
गजल व बहर के विषय में कोई भी जानकारी चाहिए हो तो सुबीर जी के ब्लॉग पर जाइये
इसे पाने के लिए आप इस पते पर क्लिक कर सकते हैं।
यदि आप गजल के बारे में अधिक जानकारी चाहते हैं कृपया आप यहाँ जा कर पुरानी पोस्ट पढिये
लोग अक्सर कमेन्ट के जरिये दूसरों के लिखे की तारीफ ही करते है मैंने ये कमेन्ट क्यों किया जानने के लिए आप मेरी ये पोस्ट पढ़ सकते है
आपने अपनी इ मेल आई दी नहीं ओपन की है इस लिए मुझे मजबूरन ये कमेन्ट करना पड़ा यदि आपको कोई आपत्ति हो तो इस कमेट को डिलीट कर दीजिये
वीनस केसरी
केसरी साहब,
जवाब देंहटाएंआपने वक़्त निकला. बहुत ख़ुशी हुई.अपनी कमी और गल्तियों को मैंने कभी छुपाया और मिटाया नहीं है.हमेशा सामने रखकर सीखने और सुधरने की कोशिश की है तो आपका कमेन्ट मिटाने का सवाल ही नहीं पैदा होता है.
मैं चाहती हूँ आप यूँ ही वक़्त निकाल कर मेरा मार्ग दर्शन करते रहें हमेशा स्वागत रहेगा.
susheela hausla afzai ke liye bahut bahut shukriya!
जवाब देंहटाएंkhoon ka rang bhi wahi hai or laash ka vajan bhi utna
जवाब देंहटाएं.....wah
sunder shelly me naazuk sandesh...is waqt ki zaroorat
kalam chalti rahe...
bhadhai..bhadhai bhadhai.