रखदो चटके शीशे के आगे मन का कोई खूबसूरत कोना ,यह कोना हर एक टुकड़े में नज़र आये गा |

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सोमवार, 8 फ़रवरी 2010

ग़ज़ल -1

निभाने के लिए निभाओ तो कोई बात है
हद तक गुज़र जाने के लिए निभाओ तो कोई बात है


एक तरफ पलाश और दूसरी तरफ मोगरे के फूल हैं
चुन के एक अदृश्य माला जो बनाओ तो कोई बात है


मैं  भटकूँ   चाहे जंगल चाहे पर्वत पर्वत
तुम ढूँढ के ले आओ तो कोई बात है


मैं  स्याह थी, स्याह हूँ ,स्याह रहूंगी
तुम उजाला बन छाजाओ तो कोई बात है


मैं  खुद में जागती आँखों का सपना हूँ
एक भरपूर नींद सुला जाओ तो कोई बात है



2 टिप्‍पणियां:

  1. rajwant jee

    mai khud me jagti aakhon ka sapna hun
    ek bharpur neend sula jaao to koi bat hay.

    aapke pure gajal ki sabse shandar liens lage. gajal man ko chhu gayi.

    kaya aap blogwani par hayn?
    yadi nahi to blogwani par aayen logon ko padhne layak likhti hayn aap.

    जवाब देंहटाएं
  2. Arshad ji,
    shukriya,apne waqt nikala.
    blogwani par kaise rejister karein?

    जवाब देंहटाएं