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मंगलवार, 16 फ़रवरी 2010

बंधन

मैं  एक बिन उगाया पीपल का पेड़ हूँ.

मुझे याद है बरसो पहले, इसी दीवार  के सहारे चुपके से मेरा जन्म हुआ था. इस प्रसव पर ना किसी ने दुःख जताया ना ख़ुशी.
शायद किसी को पता ही नहीं चला कि कब मैंने यहाँ अपनी मिचमिची आखें खोली .बेशक उनके लिए आज भी में अस्तित्वहीन हूँ पर उस आँगन के हर दुःख सुख का मैं खुद में गवाह हूँ. एक दो दफ़ा मुझे नोंच  के फेका भी गया पर मेरी जड़ो ने बेशर्मी दिखाई और फिर मैं पनपा दिया गया.
उस आंगन के हर उतार चढ़ाव का गवाह होते हुए भी किसी को मेरी गवाही की दरकार नहीं ,क्योकि मैं बिन उगाया पेपाल का पेड़ जो हूँ.
ये रोज मुझे सरसरी निगाह से देखते हैं, आते जाते अन्जाने में मुझे छू भी लेते हैं फिर भी मानसिक तौरपर मेरे अस्तित्व से बेखबर हैं . उनके लिए मैं सिर्फ एक पीपल का पेड़ हूँ इससे ज्यादा कुछ नही. इस तरहां हो के भी ना होना मुझे सालता है
चाहे मेरे पत्ते सूख के जमीन पे गिरे हों या लकदक करते टहनी पे टंगे हों,इन्हें  कोई फर्क नही पड़ता लेकिन कल जब सुदेश की नई ब्याहता सद्यस्नाता घरवाली ने आ के मुझे प्रणाम  किया ,रोली का टीका लगाया, लाल पीले धागे से मंत्रो च्चारण के साथ मेरे जिस्म को जकड़  दिया तो उस बंधन का सुख मेरे लिए अवर्चनीय था.
मुझे आज मेरे होने का अहसास हुआ. मेरे हर पत्तों ने, हर टहनियों ने ,मेरे भीतर रची बसी हर तरलता ने उसे रोम रोम से आशीर्वाद  दिया .कौन कहता है बंधन में सिर्फ दुःख होता है, मुझ अनाथ से पूछो वो बतायेगा कि बंधन में कैसा सुख होता है!









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