रखदो चटके शीशे के आगे मन का कोई खूबसूरत कोना ,यह कोना हर एक टुकड़े में नज़र आये गा |
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शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2010
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सहज और आत्मीय होने के लिए ज़ख्म की क्या ज़रूरत
जिस्म पे लगे चाहे दिल पे लगे,
ज़ख्म तो ज़ख्म होता है
दर्द जरुर होता है.
उसकी फ़ितरत से आप बाबस्ता हो
फिर क्यों हादसों को शक्ल देते हो ?
रोज़ पढने वाली कहानी बन जाते हो .
ये हादसे वज़ूद हिला देते हैं
पत्थर पे पानी सा निशा बना देते हैं .
हम जिस आंगन में ख़ुद को तराशने आये हैं
उसे ही बदनाम कर जाते हैं .
कभी सोचा है ऐसा कर के हम क्या पाते हैं ?
बात मैं तब दम है जब मिसाल बन जाओ
परिचय की इस मुहीम में
मील का पत्थर बन जाओ.
आमीन
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wah! Didi
जवाब देंहटाएंGambhir sonch me likhi kavita
behtar shabd sanyojan,umda post.