रखदो चटके शीशे के आगे मन का कोई खूबसूरत कोना ,यह कोना हर एक टुकड़े में नज़र आये गा |

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बुधवार, 24 मार्च 2010

सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर

अब ना वो पन्नो पे लिखी इबारत है
ना सजदों से घिरी इबादत है
ना ही वो पाकीजगी है .
अब तो ये कमबख्त मुहब्बत
झरोखों से निकल के सडकों पे उतर आई है
या खुदा , इस पाक एहसास की
ये कैसी रुसवाई  है .

7 टिप्‍पणियां:

  1. Sundarta se kal ke faisle par aapne apna prtikriya kiya hay..
    अब ना वो पन्नो पे लिखी इबारत है
    ना सजदों से घिरी इबादत है
    ना ही वो पाकीजगी है .
    अब तो ये कमबख्त मुहब्बत
    झरोखों से निकल के सडकों पे उतर आई है
    या खुदा , इस पाक एहसास की
    ये कैसी रुसवाई है
    kal ke faisle par ye sabse uchit pratikriya hay.

    badhai

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  2. या खुदा , इस पाक एहसास की
    ये कैसी रुसवाई है!!!
    bdi khubsurat prtikriya hai ! n jane kaisa hoga wh smaj !!!bahut bahut badhai !

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  3. usha ji aap ko apne blog pr dekh kr bhut khushi hui apne anubhv se hmara margdrshn kijiyega .
    sushila ji ,arshad bhai aap ko bhi shbdo me dekhna sukhd lgta hai

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  4. अरे कुछ नया लिखो बहन !!! नए पोस्ट का इंतजार है .

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  5. ये साफ़ पाक बात अच्छी कही आपने .. अब प्यार के नरम एहसास किताबों में मिला करेंगे लगता है .. जैसे बहुत कुछ केवल किताबों तक गया है वैसे ही .. सुन्दर रचा आपने !!

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