रखदो चटके शीशे के आगे मन का कोई खूबसूरत कोना ,यह कोना हर एक टुकड़े में नज़र आये गा |
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मंगलवार, 9 नवंबर 2010
धोखा
मै धागे का एक सिरा पकड़
फिर उस पर चल कर
तुम तक पह्चूं
ये जानने के लिए कि तुम कौन हो
जो मेरे ख्वाबो में आ कर अदृश्य संदेश भेजते हो ,
स्पर्श को महसूस कराते हो ,
सोंधी खुश्बू वाली रोटी खिलाते हो
सर्द रातों में लिहाफ उढ़ाते हो ,
गर्म रातों में बेना झुलाते हो |
जब मै धागे के बीचोबीच पहुंची
तो महसूस किया कि
धागा ढीला हो रहा है ,
लपलपा रहा है |
तुम्हारे सिरे से कुछ सरकता हुआ आ रहा है |
अरे ! ये तो अमूर्त धोखा है जो मुझसे टकरा कर ,
मुझे खाई में गिराने को आतुर है |
मैंने उसी क्षण अपने बढ़ते कदम
वापस कर लिए |
धागा फिर तन गया
और वो अमूर्त धोखा
मेरे सिरे पर वर्जित क्षेत्र का बोर्ड देख
अवाक् वहीं ठहर गया |
इस तरहां
मैंने अपने आप को
ख्वाबों में भी
तुम्हारे बुने जाल से मुक्त कर लिया |
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कमाल है बेमिसाल प्रस्तुति. ये बात तो जबरदस्त है. काश!!! ऐसा और लोग भी कर पाते जाने कितने ही लोग धोखा खाने से बच जाते
जवाब देंहटाएंकाश यह वर्जित क्षेत्र का बोर्ड पहले ही देख पायें लोंग ...अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंमैंने अपने आपको
जवाब देंहटाएंखबों में भी
तुम्हारे बुने जाल से मुक्त कर लिया।
बहुत अच्छी कविता है।
मुक्ति में ही आनन्द है, उलझन में विषाद।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है!
जवाब देंहटाएं--
नियमित लिखती रहें!
देर आये दुरुस्त आये...क्या बात है आप तो खवाब में ही संभल गए और यहाँ यथार्थ की धरा पर अपने पैर लहू-लुहान कर के लोग संभल नहीं पाते.
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना.
धागा फिर तन गया
जवाब देंहटाएंऔर वो अमूर्त धोखा
मेरे सिरे पर वर्जित क्षेत्र का बोर्ड देख
अवाक् वहीं ठहर गया |
बेमिसाल प्रस्तुति....
हमें यह पता भी नहीं होता है कि जिन रिश्तों से हम बंधे हैं उसके दूसरे छोर पर क्या है और कई कई बार तो उसे जानने और पहचानने में उम्र निकल जाती है !
जवाब देंहटाएंकमाल की पोस्ट है !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
राजवंत जी,
जवाब देंहटाएंये जो बैक गियर लगाया है.... बहुत ज़रूरी है!
बेहद खूबसूरत!
आशीष
---
पहला ख़ुमार और फिर उतरा बुखार!!!
rajwant ji namaskaar,kuch likha hai fir se aapko aamantrit kar raha hu,ummid hai jld hi aapka margdarshan milega,,,
जवाब देंहटाएंजब मै धागे के बीचोबीच पहुंची
जवाब देंहटाएंतो महसूस किया कि
धागा ढीला हो रहा है ,
...............
व्यंजनापूर्ण अच्छी कविता के लिए बधाई !!!