वो जो कोई बात
तेरे दिल से निकले
और मेरे दिल तक पहुंचे ,
क्षत विक्षत होकर ,
तो दोष किसका ?
तुमने भेजा लापरवाह होकर
या मैंने लपका बेपरवाह होकर ?
दो ----
समंदर पर बरखा क़ी बूँद
और दिल उदास
तो मन क्या सोचेगा ?
तीन ----
आओ तुम्हे तुम से मिलाएं
क़ी तुम्हे क्यूँ लगता है
क़ी तुम गुम हो गई हो ?
चार ----
बगैर किसी फलसफे के
तुम्हे
तुम्हारी जिल्द के साथ
जो मै पढना चाहूँ
तो क्या ये मुमकिन है ?
Rajwant didi,
जवाब देंहटाएंवो जो कोई बात
तेरे दिल से निकले
और मेरे दिल तक पहुंचे ,
क्षत विक्षत होकर ,
तो दोष किसका ?
तुमने भेजा लापरवाह होकर
या मैंने लपका बेपरवाह होकर ?
ek sachchai ko bayan karta hay...aisi isthiti me laparwahi kisi ek ki ho aisa nahi ho sakta..aise bhi kaha jata hay tali hamesha ek haath se nahi bajti.
aapki lekhni ek samjhdaar lekhni hay..jisme shabdon ka jadu chal jata hay.
Didi mere naye blog par aapka hastakshar ho jaaye to margdarsan milega..
dadikasanduk.blogpost.com
वाह..सभी के सभी भावपूर्ण और प्रभावशाली !!!!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सुन्दर..
छोटी कविताएं लेकिन बहुत विस्तृत और गहन अर्थों वाली।
जवाब देंहटाएंइन बेहतरीन रचनाओं के लिए बधाई।
वो जो कोई बात
जवाब देंहटाएंतेरे दिल से निकले
और मेरे दिल तक पहुंचे ,
क्षत विक्षत होकर ,
तो दोष किसका ?
तुमने भेजा लापरवाह होकर
या मैंने लपका बेपरवाह होकर ?
बहुत खूब ....!!
चारो नज़्म बेहद गहरे भाव लिए हुए ...मन को छू गयी .
जवाब देंहटाएंअजी मन में इच्छा हो तो सब कुछ मुमकिन है
जवाब देंहटाएंबेहद सशक्त लेखन ....
जी हाँ बिना फलसफे के पढ़ना मुमकिन हैं.
जवाब देंहटाएंऔर किसी को उसी से मिला देना तो पुन्य का काम है..चलिए शुरू की जिए हम से ही. :):)
अच्छी क्षणिकाएं.
.
जवाब देंहटाएंतुमने भेजा लापरवाह होकर
या मैंने लपका बेपरवाह होकर ? ...
wonderful creation !
.
तो दोष किसका ? तुमने भेजा लापरवाह होकर या मैंने लपका बेपरवाह होकर ?
जवाब देंहटाएंगज़ब!
बगैर किसी फलसफे के
जवाब देंहटाएंतुम्हे
तुम्हारी जिल्द के साथ
जो मै पढना चाहूँ
तो क्या ये मुमकिन है ?
आह! क्या खूब ख्याल है सीधा दिल पर वार करता है……………बेहद सुन्दर क्षणिकायें।
वो जो कोई बात
जवाब देंहटाएंतेरे दिल से निकले
और मेरे दिल तक पहुंचे ,
क्षत विक्षत होकर ,
अक्सर शब्द अपने अर्थ बदल देते हैं ....सभी क्षणिकाएं गहन अर्थ रखती हुई
वाह क्या बात है ... हरेक क्षणिका बेहद सुन्दर !
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सुन्दर..
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर शब्द रचना ।
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण रचनाएँ!
जवाब देंहटाएंहम सभी बेपरवाह हैं तभी संभवतः संसार में अशान्ति मची पड़ी है।
जवाब देंहटाएंअब समंदर पर बरस ही गया कोई...
जवाब देंहटाएंतो न 'मन' ही कुछ कर सकता
और न 'दिल' के ही बस मे कुछ !!!! :)
बगैर किसी फलसफे के
जवाब देंहटाएंतुम्हे
तुम्हारी जिल्द के साथ
जो मै पढना चाहूँ
तो क्या ये मुमकिन है..... waah
arshad , rnjna ji , mhendra ji , hrkeeratji ,upndr , rchna ji , anamika , divya , vandna , sangeeta di , prveen susheela ,rashmi di,indrneel sanjay aap sbhi ka aabhar .
जवाब देंहटाएंvichar vimarsh ke is khule manch me aap sbhi ka sdaiv swagat rhega .
bahut sunder.
जवाब देंहटाएंतुमने भेजा लापरवाह होकर
जवाब देंहटाएंया मैंने लपका बेपरवाह होकर ? खामोशियाँ पानी के दर्पण की तरह पारदर्शी होती हैं !तमाम गलत फहमियों के बावजूद सम्भावना है अभी ...बाकी...कुछ है अभी ! राज ! आपको बहुत बहुत बधाई ! अनकहा कह डालती हैं आप !!
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sabhee kshnikae ek se bad kar ek.......
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