रखदो चटके शीशे के आगे मन का कोई खूबसूरत कोना ,यह कोना हर एक टुकड़े में नज़र आये गा |

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गुरुवार, 18 मार्च 2010

रीतापन

आइये औंटी जी '' उस किशोर रिक्शे वाले कहा .
''नही बेटा ,पास ही घर है ''
''तो क्या हुआ ,आइये ना ''
नही भाई ,रिक्शा नही चाहिए ''
''मै भी उधर ही जा रहा हूँ  उतारदूंगा ''एक पल को वो ठिठका ''औंटी जी बात पैसो की नही है ,आज सुबह से कोई मेरे रिक्शे पर नही चढ़ा  .बस इसी बात से उदासी है''फिर हसते हुए उसने मेरे हाथ से सब्जी वाला बैग ले लिया ''आइये ना ''
उसके दिल के रीतेपन को भरने के ख्याल से मै भी मुस्कुराते हुए ,रिक्शे पे बैठ के बोली ''चल भई ''.
यहाँ भी बात पैसों की नही थी .

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