रखदो चटके शीशे के आगे मन का कोई खूबसूरत कोना ,यह कोना हर एक टुकड़े में नज़र आये गा |

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बुधवार, 7 अप्रैल 2010

छन छन के स्वर में जैसे .............



सूना सूना पन्ना हो 
शब्दों का गहना हो 
स्याही की होली हो 
भावों की अठखेली हो 


मन भी कुछ चंचल हो 
आखों में अंजन हो 
हाथों पे मेहँदी और 
माथे पे कुमकुम हो 


झरने के नीचे इक 
चाँदी की थाली हो 
छन छन के स्वर में जैसे
कविता मतवाली हो



3 टिप्‍पणियां:

  1. आपने तो कविता को रसधार बना दिया .. बारिश का पहला छरका हों जैसे !! आज फुर्सत में बैठे तो इतनी उम्मीदों से लबरेज हों गए हम तो ... राज .. आप कैसी हैं !

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  2. pragya aapko apne blog pr dekh kr bhut khushi hui priwarik vysthta ki vjh se cumputer ki trf aa nhi pai .main thik hu .chnd laene aapke liye .......

    mujhe krni hai koshish vo jmi ab door nhi
    jrra.jrra hai muntjir vo lmha bhi ab door nhi
    lpk ke pkd lu vo khushi bhi ab door nhi
    aamin .

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