औरत को अगर तकलीफ हो
तो पहले बोलती नही थी
आज बोलती है , चीखती है
प्रतिरोध करती है , जवाब भी मांगती है |
ये तो क्रिया प्रतिक्रिया है
लेकिन अगर औरत ने इस
तकलीफ का जहर गटक लिया
और बेपरवाह हो कह उठी
'' शाख से टूट के गिरा तो क्या
पत्ता तो हूँ ना मै
सुपुर्दे खाक हो जाऊं
तो कोई नाम दे देना ''
तो ये स्थिति बड़ी विस्फोटक होगी
सृष्टि के नियम तक पे रखे रह जायेंगे
संतुलन असंतुलित हो जायेगा |
औरत का बेपरवाह हो जाना
समाज रूपी इमारत का
भरभरा कर ढह जाना है
मजबूत से मजबूत नीव भी
मूकदर्शक बन रह जाएगी |
विश्वकल्याण के लिए आह्वाहन है
''औरत को बेपरवाह ना बनने दो
उसे उसकी अस्मिता के साथ हक
ईमानदारी और इज्जत से जीने दो ''
ये अल्फाज कोई भीख नही है
ताकीद है उन लोगों के लिए खासकर ,
जो सामाजिक समीकरण को
अपनी बपौती समझते है |
ख्याल रहे
दर्द बर्दाश्त की हद के बाद
दर्द नही रह जाता
वो हिस्सा सुन्न हो जाता है
उस पे किसी का असर नही होता |
औरत का बेपरवाह होने से आपका क्या समंध है, मुझे समझ नहीं आया. क्या आप पहले जो समाज ने औरत के लिए नियम बनाये थे, उसका समर्थन और आज की औरत जो मर्द के कंधे से कन्धा मिला कर चलने की बात करती है उसका विरोध कर रही है. या फिर कुछ और? मेरी एक पोस्ट इसी ब्यथा को आगे बढाती हुई "पता नहीं ज्यादातर तूफ़ान औरतो के नाम से क्यों रखे जाते है.'' जरुर पड़े.
जवाब देंहटाएंjoshi ji
जवाब देंहटाएंbhut achchha prshn aapne puchha hai .itihas gwah hai ikka dukka chhod ke phle ouratbolti nhi thi aaj ki ourat glt bat pe prtirodh bhi krti hai.aaj vo aapne vjood ,apni asmita ke prti bhut smvednshil ho gi hai aaj ki tarikh me vo aatmnirbhr bhi ho gi hai .vo sirf ijjt our smman ki apeksha chahti hai our ye uska hk bhi hai aise me ye na milne pr vo vidroh bhi kr skti hai .isi liye ye aahwahn hai ki use uski asmita ke sath jine do .mujhe pura vishvas hai aise me vo kbhi apni bhagidari se bhagegi nhi .
our ha subh ka vkt hai thoda kam hai phli furst me hi aapki rchnap dhungi .
जवाब देंहटाएंराज आपके दर्द के तीखेपन से हम भी घायल हुए .. सच कहा आपने .औरत खुद की हर बात को लेकर बेपरवाह है ..अपने दावों की बेहद अनदेखी करती है ..
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