रखदो चटके शीशे के आगे मन का कोई खूबसूरत कोना ,यह कोना हर एक टुकड़े में नज़र आये गा |

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मंगलवार, 13 जुलाई 2010

वो मासूम सवाल


चिनार का दरख्त 
मोगरे के फूल 
पारिजात की पंखुडियां
और गुलाब की खुश्बू 
कैक्टस ने पूछा -----
''सब पे तो लिखती हो 
मुझ पे क्यों नही लिखा ?''
और मै उसके मासूम से  सवाल पे 
शर्मिंदा शर्मिंदा हो गई |





7 टिप्‍पणियां:

  1. अरे वाह!! क्या बात है बहुत सुंदर

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  2. तो इंतज़ार है उन शर्मसार शब्दों का.... सिर्फ कैक्टस के लिए

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  3. रश्मि दी
    केक्टस शुक्र गुज़ार है आप का | वो कहता है --------
    आज मै बहुत खुश हूँ कि
    पन्नों पे मुझे मिली है जगह
    वरना अक्सर बिना छत के
    बाग़ बगीचों में मिलती रही है पनाह मुझे |
    मै बेफिक्र हूँ अब हर आहट से
    उसे खुद भी अब मुझसे बच के चलना होगा
    कोई पल्लू जो अड़ जाये मुझमे
    तो बड़ी नजाकत से उसे छुड़ाना होगा |
    कई दर्द की दवा भी हूँ मै
    नजर की दरकार है पहचानने के लिए
    आदम की तरहां फितरत नही बदलता हूँ मै
    अपने हर कांटे ,हर चुभन से बहुत प्यार है मुझे |

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  4. कैक्टस pe likhna bahut sahiiiiiiiiiiiiiii
    waaaaaaahhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhh

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  5. कभी आना जिंदगी की गली में
    जहाँ तरह तरह के केकटस हैं
    लेकिन सच कहता है ये केक्टस
    साथ न छोडेगा बीच रास्ते में
    और हो सके तो कुछ सीख ले मुझसे

    http://anamika7577.blogspot.com/2010/05/blog-post.html

    इस लिंक को पढ़ लोगे तो सीख मिल जायेगी.

    बहुत कम शब्दों में आपने कमाल का लिख दिया.

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  6. मैं एक
    भीषण रेगिस्तान
    की मानिंद
    जहाँ
    छाँव के लिए
    दरख्त नही
    बस
    चुभन के लिए
    नागफनी हैं।

    आप शर्मिंदा ना हों..लिखने वाले नागफनी पर भी लिखते हैं और गुलमोहर पर भी ....
    कभी मौका हो तो पढियेगा ...

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  7. waah raaj ..tippani ke jawaab men kaktus par likhi kuchh panktiyan laajwaab kar gayin .. badhaayi

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