औरत एक तवा है | अपनी पीठ को तेज आंच से जलाती है और दूसरी तरफ अपने पेट पर छोटी छोटी , गोल गोल , सफेद सफेद रोटियां सेकती है | ये आंच जब जरूरत से कहीं ज्यादा हों जाती है तो रोटी से भाप की शक्ल मै निकल कर उस तवे के जिस्म को ही जला देती है | आंच का सही तापमान बहुत जरूरी है इससे न तवा जलेगा और ना रोटी | इसमें चिमटे की भूमिका को भी नजरंदाज नही किया जा सकता है | तवे की पीठ तो जल ही रही है पेट ना भाप से जले इसके लिए रोटी को उलटना पलटना जरूरी होता है उसके कच्चेपन को धीमे धीमे सेकना पड़ता है तभी ये रोटियां अपने पूरे सौन्दर्य और पौष्टिकता के साथ पवित्र आहार बनती है , अपनी अस्मिता ग्रहण करती है | तवे और चिमटे दोनों की जिम्मेदारी होती है कि वो रोटी को भोज्य बनाये ना कि भोग्य |
रखदो चटके शीशे के आगे मन का कोई खूबसूरत कोना ,यह कोना हर एक टुकड़े में नज़र आये गा |
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शुक्रवार, 28 जनवरी 2011
परवरिश
औरत एक तवा है | अपनी पीठ को तेज आंच से जलाती है और दूसरी तरफ अपने पेट पर छोटी छोटी , गोल गोल , सफेद सफेद रोटियां सेकती है | ये आंच जब जरूरत से कहीं ज्यादा हों जाती है तो रोटी से भाप की शक्ल मै निकल कर उस तवे के जिस्म को ही जला देती है | आंच का सही तापमान बहुत जरूरी है इससे न तवा जलेगा और ना रोटी | इसमें चिमटे की भूमिका को भी नजरंदाज नही किया जा सकता है | तवे की पीठ तो जल ही रही है पेट ना भाप से जले इसके लिए रोटी को उलटना पलटना जरूरी होता है उसके कच्चेपन को धीमे धीमे सेकना पड़ता है तभी ये रोटियां अपने पूरे सौन्दर्य और पौष्टिकता के साथ पवित्र आहार बनती है , अपनी अस्मिता ग्रहण करती है | तवे और चिमटे दोनों की जिम्मेदारी होती है कि वो रोटी को भोज्य बनाये ना कि भोग्य |
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वाह
जवाब देंहटाएंनमन
सुन्दर परिकल्पना।
जवाब देंहटाएंऔरत को तवा; रोटी को बेटी बना दिया,
जवाब देंहटाएंतहज़ीब भूले लोगो को ये क्या सिखा दिया!
अब तक इसी रविश पे तो रक्खे गए है ये,
चाहा तो भोगा; चाहा तो उसको जला दिया.
-- mansoorali हाश्मी
http://aatm-manthan.com
mansoor saheb
जवाब देंहटाएंbat ki teh tk jane our use etni shiddt se mhsoos krne ke liye shukriya . prveen ji our girish ji shukriya aapko bhi .
बहुत उम्दा!
जवाब देंहटाएंतवे और चिमटे दोनों की जिम्मेदारी होती है कि वो रोटी को भोज्य बनाये ना कि भोग्य .....
जवाब देंहटाएंआपकी लेखनी ने फिर खामोश कर दिया .....
लिखने बैठी तो बहुत सारे मंज़र सामने आ गए ....
जो हजारों बार सवाल उठ चुके हैं ...
उन्हें फिर क्या उठाऊँ ....?
मंसूर जी भी कह ही गए हैं ...
अब तक इसी रविश पे तो रक्खे गए है ये,
चाहा तो भोगा; चाहा तो उसको जला दिया.
बहुत गहरी बात कह दी आपने ..
इसे पद्य रूप में भी लिखा जा सकता था ....
वाह जी जबाब नही, बहुत ही सुंदर बात कही आप ने धन्यवाद
जवाब देंहटाएंaapki soch ke madhya kho jati hun
जवाब देंहटाएंबहुत लाज़वाब सोच..बहुत सार्थक..
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर बात कही आप ने
जवाब देंहटाएंलाज़वाब सोच को नमन,धन्यवाद....
जवाब देंहटाएंआपकी सोच को सलाम
जवाब देंहटाएंडॉ. दिव्या श्रीवास्तव ने विवाह की वर्षगाँठ के अवसर पर किया पौधारोपण
जवाब देंहटाएंडॉ. दिव्या श्रीवास्तव जी ने विवाह की वर्षगाँठ के अवसर पर तुलसी एवं गुलाब का रोपण किया है। उनका यह महत्त्वपूर्ण योगदान उनके प्रकृति के प्रति संवेदनशीलता, जागरूकता एवं समर्पण को दर्शाता है। वे एक सक्रिय ब्लॉग लेखिका, एक डॉक्टर, के साथ- साथ प्रकृति-संरक्षण के पुनीत कार्य के प्रति भी समर्पित हैं।
“वृक्षारोपण : एक कदम प्रकृति की ओर” एवं पूरे ब्लॉग परिवार की ओर से दिव्या जी एवं समीर जीको स्वाभिमान, सुख, शान्ति, स्वास्थ्य एवं समृद्धि के पञ्चामृत से पूरित मधुर एवं प्रेममय वैवाहिक जीवन के लिये हार्दिक शुभकामनायें।
एक निवेदन...............सहयोग की आशा के साथ.......
जवाब देंहटाएंमैं वृक्ष हूँ। वही वृक्ष, जो मार्ग की शोभा बढ़ाता है, पथिकों को गर्मी से राहत देता है तथा सभी प्राणियों के लिये प्राणवायु का संचार करता है। वर्तमान में हमारे समक्ष अस्तित्व का संकट उपस्थित है। हमारी अनेक प्रजातियाँ लुप्त हो चुकी हैं तथा अनेक लुप्त होने के कगार पर हैं। दैनंदिन हमारी संख्या घटती जा रही है। हम मानवता के अभिन्न मित्र हैं। मात्र मानव ही नहीं अपितु समस्त पर्यावरण प्रत्यक्षतः अथवा परोक्षतः मुझसे सम्बद्ध है। चूंकि आप मानव हैं, इस धरा पर अवस्थित सबसे बुद्धिमान् प्राणी हैं, अतः आपसे विनम्र निवेदन है कि हमारी रक्षा के लिये, हमारी प्रजातियों के संवर्द्धन, पुष्पन, पल्लवन एवं संरक्षण के लिये एक कदम बढ़ायें। वृक्षारोपण करें। प्रत्येक मांगलिक अवसर यथा जन्मदिन, विवाह, सन्तानप्राप्ति आदि पर एक वृक्ष अवश्य रोपें तथा उसकी देखभाल करें। एक-एक पग से मार्ग बनता है, एक-एक वृक्ष से वन, एक-एक बिन्दु से सागर, अतः आपका एक कदम हमारे संरक्षण के लिये अति महत्त्वपूर्ण है।
राजवंत राज जी
जवाब देंहटाएंसादर सस्नेहाभिवादन !
परवरिश अच्छी गद्य कविता है …
कच्चेपन को धीमे धीमे सेकना पड़ता है … सचमुच , बहुत निपुण होने की आवश्यकता है …
आपकी रचनाएं मंथन का अवसर देती हैं, क्योकि स्वयं आप इन्हें सृजित करते हुए इसी प्रक्रिया से गुज़रती हैं ।
पुनः साधुवाद !
♥ प्यारो न्यारो ये बसंत है !♥
बसंत ॠतु की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार