रखदो चटके शीशे के आगे मन का कोई खूबसूरत कोना ,यह कोना हर एक टुकड़े में नज़र आये गा |

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बुधवार, 3 फ़रवरी 2010

ख्वाहिश

 में उन पलों को जीना चाहती हूँ

तुम चाहो तो इसे दिवास्वप्न कह लो .

मैं उन एहसासों को छूना चाहती हूँ 

तुम चाहो तो इसे पागलपन कह लो ! 










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