रखदो चटके शीशे के आगे मन का कोई खूबसूरत कोना ,यह कोना हर एक टुकड़े में नज़र आये गा |

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बुधवार, 3 फ़रवरी 2010

घर की तलाश जारी है

चाँद तारों के पार जो कोई मुकाम मिल जाये 
तो बताना मुझे
एक घर की तलाश जारी है
चौखट ना हो,खिड़की ना हो,दरवाज़ा भी ना हो
कोई बात नहीं 
सुकून की एक चादर हो बस इतना काफी है मेरे लिए
एक फूल साथ ले जाऊँगी
खुली हथेली का मोती बनाऊँगी उसे 
कुछ उसकी सुनूंगी कुछ अपनी कहूँगी 
युही कहते सुनते आसमाँ की सैर करूंगी
एक पन्ना भी ले जाना है मुझे ,खालिस कोरा 
उस दुनिया की फ़िज़ा को नज़्म की शक्ल दूँगी 
कोई अक्षर टूट के नीजे गिरेगा नहीं 
ओढ़नी का जाल पहले बिछा दूँगी मैं 
जिस्म को सांस चाहिए 
तो रूह को आवाज़ चाहिए
ये अक्षर गुम गए तो मर के फिर मर जाऊंगी मैं 
मैं  दोबारा मरना  नहीं चाहती.
घर मिले तो बताना, किराये की फ़िक्र ना करना.
जो कुछ भी खरा बचा होगा मुझमे 
एक ही किश्त में दे जाऊंगी उसे.
उसकी फ़िक्र ना करना
बस घर चाँद तारों के पार हो इसका ख़याल रखना.












2 टिप्‍पणियां:

  1. घर की तलाश जारी है मिले तो बताना ........,वाह क्या बात है ! आपकी कविता ने तो चाँद पर घर बनाने के सपने को साकार कर दिया . बहुत बहुत बधाई .

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  2. soulful....
    ek khawaish meri bhi hai
    is ghar me apna padosi jaroor banana mujhe
    har lamha shukrana adaa karungee.

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