रखदो चटके शीशे के आगे मन का कोई खूबसूरत कोना ,यह कोना हर एक टुकड़े में नज़र आये गा |

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शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2010

रैगिंग


सहज और आत्मीय होने के लिए ज़ख्म की क्या ज़रूरत 
जिस्म पे लगे चाहे दिल पे लगे,
ज़ख्म तो ज़ख्म होता है 
दर्द जरुर होता है.
उसकी फ़ितरत से आप बाबस्ता हो
फिर क्यों हादसों को शक्ल देते हो ?
रोज़ पढने वाली कहानी बन जाते हो .
ये हादसे वज़ूद हिला देते हैं 
पत्थर पे पानी सा निशा बना देते हैं .
हम जिस आंगन में ख़ुद को तराशने आये हैं  
उसे ही बदनाम कर जाते हैं .
कभी सोचा है ऐसा कर के हम क्या पाते हैं ?
बात मैं तब दम है जब मिसाल बन जाओ 
परिचय की इस मुहीम में 
मील का पत्थर बन जाओ.
आमीन



   
 

मंगलवार, 16 फ़रवरी 2010

बंधन

मैं  एक बिन उगाया पीपल का पेड़ हूँ.

मुझे याद है बरसो पहले, इसी दीवार  के सहारे चुपके से मेरा जन्म हुआ था. इस प्रसव पर ना किसी ने दुःख जताया ना ख़ुशी.
शायद किसी को पता ही नहीं चला कि कब मैंने यहाँ अपनी मिचमिची आखें खोली .बेशक उनके लिए आज भी में अस्तित्वहीन हूँ पर उस आँगन के हर दुःख सुख का मैं खुद में गवाह हूँ. एक दो दफ़ा मुझे नोंच  के फेका भी गया पर मेरी जड़ो ने बेशर्मी दिखाई और फिर मैं पनपा दिया गया.
उस आंगन के हर उतार चढ़ाव का गवाह होते हुए भी किसी को मेरी गवाही की दरकार नहीं ,क्योकि मैं बिन उगाया पेपाल का पेड़ जो हूँ.
ये रोज मुझे सरसरी निगाह से देखते हैं, आते जाते अन्जाने में मुझे छू भी लेते हैं फिर भी मानसिक तौरपर मेरे अस्तित्व से बेखबर हैं . उनके लिए मैं सिर्फ एक पीपल का पेड़ हूँ इससे ज्यादा कुछ नही. इस तरहां हो के भी ना होना मुझे सालता है
चाहे मेरे पत्ते सूख के जमीन पे गिरे हों या लकदक करते टहनी पे टंगे हों,इन्हें  कोई फर्क नही पड़ता लेकिन कल जब सुदेश की नई ब्याहता सद्यस्नाता घरवाली ने आ के मुझे प्रणाम  किया ,रोली का टीका लगाया, लाल पीले धागे से मंत्रो च्चारण के साथ मेरे जिस्म को जकड़  दिया तो उस बंधन का सुख मेरे लिए अवर्चनीय था.
मुझे आज मेरे होने का अहसास हुआ. मेरे हर पत्तों ने, हर टहनियों ने ,मेरे भीतर रची बसी हर तरलता ने उसे रोम रोम से आशीर्वाद  दिया .कौन कहता है बंधन में सिर्फ दुःख होता है, मुझ अनाथ से पूछो वो बतायेगा कि बंधन में कैसा सुख होता है!









सोमवार, 15 फ़रवरी 2010

एक ख़त -पारिवारिक विघटन की और बढ़ते जा रहे दरकते रिश्तों के नाम

गूंध के नर्म आटे में प्याज के चंद टुकड़े
मैंने खुश्बू वाली दो रोटियां बनाई है
इक तेरे  लिए बनाई है इक अपने लिए बनाई है
हाँ!साथ बैठ के खाने को ये दो रोटियां बनाई है
दोस्तों !
ज़िन्दगी में सिर्फ और सिर्फ प्यार ही एक ऐसा सच है जिसके आगे दुनिया की सारी दौलत फीकी पड़ जाती है.अपने प्यार के साथ जीना बेहद खुशगवार एहसास है इसे सहेज के सवार के रखो.इसे ज़िन्दगी भर की कसक मत बनने दो.
कहते है हमसफ़र को उसकी सारी अच्छाईयों और बुराइयों के साथ कबूल करना चाहिए ये सच भी है पर समझदार सोच ये है कि  कितना ही अच्छा हो अगर हम अपनी अच्छाइयों से उसे उसकी बुराइयों से दूर कर सकने में सफलता पा सके ये कोई मुश्किल काम नही है .
ये जिस्म मिला है अच्छा काम करने के लिए ताकि जब वो परमात्मा के पास पहुचे तो शर्मिंदा ना हो मनुष्य को सिर्फ यही कामना
करनी चाहिए कि हे प्रभु मुझसे कोई गलत काम ना हो ताकि में आपके पास सुख और शांति से आ सकूँ .
ये सुख और शांति  क्या है ?
ये सुख है दूसरो को ख़ुशी देना
शांति है उसकी ख़ुशी में खुश होना !
ये तभी संभव है जब हम अपनापन रखे.कहीं कुछ गलत हो गया हो या हो रहा हो तो धैर्य और प्यार के साथ उसे ठीक करने कि कोशिश करे .अब सारी दुनिया तो हम सही नहीं कर सकते पर अपने इर्द गिर्द तो ऐसा वातावरण बना सकते हैं जहाँ प्यार कि खुश्बू हो,सुरक्षा का एहसास हो, अच्छी बातें हो अच्छे संस्कार हो. इसके लिए अच्छे विचार सुन्दर अभिव्यक्ति और संतुलित व्यवहार ये तीन मंत्र हैं .इन तीनो मंत्र का एक ही शत्रु हैं क्रोध .सबसे पहले क्रोध का नाश करना ज़रूरी है.ये अच्छे विचार को हमारे पास फटकने नहीं देते .हमारे अच्छे विचार भी गलत भाषा के प्रयोग से बहुत ही असभ्य और असंतुलित हो जाते है.सभ्य आचरण से हम जहाँ बहुत सी दुविधाओ को ख़त्म कर सकते हैं.वही असभ्य आचरण से बहुत सारी दुविधाओ को जन्म देते है.इसलिए क्रोध का नाश करने को एक आवश्यक अभ्यास कि तरह अपने जीवन में अपनाना चाहिए.


हमारे शरीर के सभी अंग बहुत संवेदनशील है,मगर हाथ और जीभ दो अंग ऐसे होते हैं जो अच्छाई ,बुराई दोनों को पराकाष्ठा तक पहुचाने का काम करते हैं.हाथ का नियंत्रण बहुत जरुरी है.ये हमारे समग्र विचारो को कार्यरूप देता है.हम अच्छे विचार रखेंगे तो ये हाथ अच्छे कामो में हमारा साथ देंगे.हम बुरे विचार रखेंगे तो इन हाथों से गलत और असभ्य कार्य ही होंगे.परमात्मा ने संपूर्ण सृष्टि में सिर्फ और सिर्फ मनुष्य की जात ही ऐसी बनाई है जिसे सोचने समझने की शक्ति,बुद्दि दी है इसलिए इसका सही इस्तमाल कर हम इन्ही हाथों से स्वकल्याण ,जनकल्याण और विश्व कल्याण कर सकते हैं.
जीभ का इस्तेमाल हमारे पूरे व्यक्तित्व को प्रतिविम्बित करता है.बहुत आकर्षक व्यक्तित्व का मालिक ज़बान के गलत प्रयोग से जहाँ अपना पूरा सम्मान पल भर में खो देता है वहीं साधारण से साधारण व्यक्तित्व का मालिक सुसंस्कृत और सभ्य भाषा से पूरे समाज में सम्मान का पात्र बनता है.इसलिए इसको इस्तेमाल करते समय सावधानी बरतना ज़रूरी है .ये जीभ ही है जो राजसिहासन पर बिठाती  है और ये जीभ ही है जो राजसिंहासन से उतारती है .
हर रिश्ते में विश्वास का होना बहुत ज़रूरी है.किसी भी एक रिश्ते में जब यह विश्वास खंडित होता है तो बहुत सारे रिश्ते इससे प्रभावित होते है.इसके विपरीत एक रिश्ते में जब यह पुख्ता (मज़बूत )होता है तो बहुत सारे रिश्ते खुद बा खुद मज़बूत हो जाते है.जो बीत गया सो बीत गया.अतीत के पन्नो को पलटने के बजाय आने वाले कल के लिए अगर हम खूबसूरत ,नर्म कालीन बिछाएं तो सफ़र कितना सुखद होगा है ये हमारी समझदारी पर निर्भर करता है.अतीत का वो कोई भी पन्ना जो दुःख दे सकता है उसे हमेशा के लिए अपनी ज़िन्दगी से उखाड़ फेकना चाहिए, कभी भूल कर भी उसपर चर्चा नहीं करनी चाहिए.
हम जिसका स्मरण बार बार करते है हमारे इर्द गिर्द का वायुमंडल उसी से प्रभावित होता है हम बार बार दुखद बातों को याद करेंगे तो हमारा परिवेश उतना ही भारी होगा.दुःख हमेशा भारी होता है.ये हमारे पूरे व्यक्तित्व को पैरों तले कुचल देता है.सुख हल्का होता है इससे हमारे सारे संताप झर जाते है.इसलिए हमेशा अपने इर्द गिर्द खुशनुमा ,प्रबुद्ध ,ज्ञानवान,प्रकाशमान माहौल बनाकर रखने का प्रयास करना चाहिए.
कोई भी व्यक्ति अपने आप में पूर्ण नहीं होता है.जब हम अपने आप में सम्पूर्ण नहीं होते है तो किसी को उसकी किसी कमी के लिए दण्डित करने का हमें कोई अधिकार नहीं है.इसके लिए एक शब्द है क्षमा  .हर इंसान अपने अच्छे और बुरे कृत्य के लिए स्वयं ही जिम्मेदार होता है.उसको उसके हर अच्छे और बुरे कृत्य का भुगतान करना ही होता पड़ता है.इसीलिए किसी को भी अपमानित करने, दण्डित करने से कही ज्यादा बेहतर है क्षमा  करना और सही राह दिखाना.बाकी जैसा कर्म वैसा भाग्य .इसीलिए हमेशा सत्कर्म करना चाहिए और प्रेरित करना चाहिए.
सम्मान हर रिश्ते की रीढ़ की हड्डी होती है,गुरु शिष्य ,भाई बहन,पति पत्नि ,माता पिता और उनकी संतान ,दोस्ती,छोटे बड़े हर रिश्ते में सम्मान की जरुरत होती है.जहाँ भी इनमें थोड़ी सी भी कमी होती है वहां रिश्ता रेत के महल सा ढ़हने लगता है.ख़ास बात ये होती है कि ये एकतरफा संभव नहीं है.इसके साथ Give and Take की फिलोसोफी लागू होती है.इसलिए हर इंसान को हर रिश्ते को सम्मान देना आना चाहिए.
बिलकुल साधारण सी बात है.एक छोटे बच्चे को प्यार और सम्मान देकर,हम उससे पूरी ज़िन्दगी ,आदर सम्मान पाने की जमीन तैयार कर सकते है.हम क्या पाते है यह हमारे व्यवहार पर निर्भर करता है.















गुरुवार, 11 फ़रवरी 2010

शिशु विमर्श

पसरे सन्नाटे  को चीरती खाई से निकली वो बिलखती चीख
ये ज़िन्दगी भीख में ना मांगी थी तो दान में क्यूँ दे दी ?


गरेढ़िये  ने ना सुनी होती वो चीख तो चील कौवों की खुराक थी वो
ज़िंदा जिस्म पे एक चीरा लगा के देखो तो ज़रा,कितना दर्द होता है .


तुम्हारे जिस्म का हिस्सा है वो, जान है, रुई सा अहसास है वो
बहुत से संताप हैं ज़िन्दगी में ये ज़िन्दगी भर का संताप क्या ज़रूरी है?


ज़माने से छुपा के उसे कोख का पालना दिया, मगर अब क्या,
वो मिचमिचाती ऑंखें सारी ज़िन्दगी तेरी पीठ पे चस्पा होंगी.


ज़रूर फूट के निकला होगा तुम्हारी छाती में जमा वो ढूध,
लाख पत्थर सा जमाओ मगर ये ममता है, जमती नहीं है.


मूंगफली के दानों पर पसरी पतले छिलके सी नाजुक नन्ही ये जान,
ये कैसे बेशर्म लोग है जो इस एहसास को ही फूँक में उड़ा देते हैं


अंतरंगता की स्वयत्ता को क़बूल करने से पहले,हे देहधारियों !
परिणाम के मूर्तरूप के लिए सिहांसन ना सही आसन तो ज़रूरी है


एक बार कर्ण पैदा हुआ फिर ये ख़ास से आम बात हो गयी,
इसलिए स्त्री विमर्श के साथ साथ चेतो ,अब शिशु विमर्श की बारी है!













बुधवार, 10 फ़रवरी 2010

विश्वास



विश्वास एक धुरी है जिस पर ज़िन्दगी  नाचती है
विश्वास एक पंख है जिस पर चिड़िया अपनी उड़ान भरती है
विश्वास एक मुस्कुराहट है जिस पर माँ न्योछावर हो जाती है
विश्वास एक समझ है जिस पर पत्नी पति की सहचरी हो जाती है
विश्वास एक भरोसा है जो गुरु अपने शिष्य पर करता है
विश्वास एक सुरक्षा है जो भाई अपनी बहन को देता है
इस एक छोटे से शब्द में कितनी ताकत है, ये तुम्हे हमसे, हमें तुमसे जोड़ता है
लेकिन इसका ताना बाना बहुत नाजुक है
इसे बहुत सहेज के रखना पड़ता है
एक भी तागा उलझना नहीं चाहिए 
एक भी रेशा अड़ना नहीं चाहिए  न ही पकड़ ढीली होनी चाहिए
उलझे धागों में भूल से कोई गांठ पढ़ भी गई तो धैर्य और प्रयास ये ही दो ऐसे मूल मंत्र हैं जिससे ये गांठ बिना टूटे खुल सकती है.
इसके लिए फिर अपने ऊपर विश्वास की ज़रुरत है .














सोमवार, 8 फ़रवरी 2010

ग़ज़ल-२

जिस्म तर बतर हैं और शाख है कि टूटती नहीं 
इनकी जकड़न से कुछ तो सीखो जबान पे लड़ने वालो 

मिट्टी,खुश्बू, हवा और पानी कोई फर्क है और कितना 
खून का रंग भी वही है और लाश का वज़न भी उतना 

गेहूं की बालियाँ नहीं पूछतीं रोटी पकेंगी कहाँ  
तो तुम कौन होते हो इसे तोड़ने और बांटने वाले 

सरहद की लड़ाई क्या कम थी कि हम आपस में लड़ने लगे 
दो रोटी हम खाते है दो रोटी तुम भी खाते हो 

इन उलझे हुए धागों को सहजे से खोलो,खोलने वालो
इल्म ना हो और गांठ भी खुल जाये तो कोई बात है

कलम की धार से खून नही बहता पर असर होताहै 
सन चौरासी का क़र्ज़ है,साथ आओ लिखने वालो 

  






ग़ज़ल -1

निभाने के लिए निभाओ तो कोई बात है
हद तक गुज़र जाने के लिए निभाओ तो कोई बात है


एक तरफ पलाश और दूसरी तरफ मोगरे के फूल हैं
चुन के एक अदृश्य माला जो बनाओ तो कोई बात है


मैं  भटकूँ   चाहे जंगल चाहे पर्वत पर्वत
तुम ढूँढ के ले आओ तो कोई बात है


मैं  स्याह थी, स्याह हूँ ,स्याह रहूंगी
तुम उजाला बन छाजाओ तो कोई बात है


मैं  खुद में जागती आँखों का सपना हूँ
एक भरपूर नींद सुला जाओ तो कोई बात है



शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2010

कोना

रख दो चटके शीशे के आगे
मन का कोई खूबसूरत कोना
ये कोना हर एक
टुकड़े में नज़र आएगा .

बुधवार, 3 फ़रवरी 2010

घर की तलाश जारी है

चाँद तारों के पार जो कोई मुकाम मिल जाये 
तो बताना मुझे
एक घर की तलाश जारी है
चौखट ना हो,खिड़की ना हो,दरवाज़ा भी ना हो
कोई बात नहीं 
सुकून की एक चादर हो बस इतना काफी है मेरे लिए
एक फूल साथ ले जाऊँगी
खुली हथेली का मोती बनाऊँगी उसे 
कुछ उसकी सुनूंगी कुछ अपनी कहूँगी 
युही कहते सुनते आसमाँ की सैर करूंगी
एक पन्ना भी ले जाना है मुझे ,खालिस कोरा 
उस दुनिया की फ़िज़ा को नज़्म की शक्ल दूँगी 
कोई अक्षर टूट के नीजे गिरेगा नहीं 
ओढ़नी का जाल पहले बिछा दूँगी मैं 
जिस्म को सांस चाहिए 
तो रूह को आवाज़ चाहिए
ये अक्षर गुम गए तो मर के फिर मर जाऊंगी मैं 
मैं  दोबारा मरना  नहीं चाहती.
घर मिले तो बताना, किराये की फ़िक्र ना करना.
जो कुछ भी खरा बचा होगा मुझमे 
एक ही किश्त में दे जाऊंगी उसे.
उसकी फ़िक्र ना करना
बस घर चाँद तारों के पार हो इसका ख़याल रखना.












क्या पानी टूटता है?

उम्र के दरिया में
वक़्त ने 
पानी की दीवार की तरह
एक ऐसी ऊची   दीवार खड़ी  की है
जिसके इस ओर तो 
अपनी शक्ल दिखती है
पर उस ओर
कुछ बेहद अपना रह गया है!


पत्थर को पानी से मारना 
कितना बेमानी लगता है!
यकीनन मेरी ये कोशिश
बिना हश्र के होगी 
सिर्फ और सिर्फ उसकी लहरें 
मेरे मज़ाक बन जाने की गवाह होगी !


क्या मालूम की उस 
दीवार के पीछे 
कोई रहम का बंजारा ठहरा हो
ये देखने की कोशिश फिर
पानी की दीवार को 
पत्थर से तोड़ने की तरह है
क्या पानी टूटता है ?






कोना



रख दो चटके शीशे के आगे

मन  का कोई खूबसूरत  कोना

ये कोना हर एक

टुकड़े में नज़र आएगा

 









ख्वाहिश

 में उन पलों को जीना चाहती हूँ

तुम चाहो तो इसे दिवास्वप्न कह लो .

मैं उन एहसासों को छूना चाहती हूँ 

तुम चाहो तो इसे पागलपन कह लो ! 










चाहत

एक लोटा पानी और उसमे
समंदर की चाहत
ये कैसा दिल है!
ज़िन्दगी के चन्द  लम्हे
मुट्ठी में आसमाँ 
ये कैसी चाहत है!
एक सांस में दुनिया की
सारी ख़ुश्बू
अजीब पागलपन है!
छोटा सा गुलदस्ता
ढेर सारे सपने
ये क्या हम है?










 







भीड़

भीड़ भी चस्पा हो गयी है

ज़िन्दगी में कुछ इस तरहां,

कि ख़ुद को पहचानने के लिए

ख़ुद की तस्वीर नाकाफ़ी है.













मशाल

एक मशाल तुम्हे चाहिए
जलाने के लिए
एक मशाल मुझे चाहिए
बुझाने के लिए
देखे इस नफरत और
मोह्हबत की जंग में
कौन मिटता है
क्या मिटाने के लिए