उम्र के दरिया में वक्त ने पानी की दीवार की तरह एक ऐसी ऊँची दीवार खड़ी की है जिसके इस ओर तो अपनी शक्ल दिखती है पर उस ओर कुछ बेहद अपना रह गया है .
पत्थर से पानी को मारना कितना बेमानी लगता है यकीनन मेरी ये कोशिश बिना हश्र के होगी सिर्फ और सिर्फ उसकी लहरें मेरे मजाक़ बन जाने की गवाह होंगी . क्या मालूम कि उस दीवार के पीछे कोई रहम का बंजारा ठहरा हो ये देखने की कोशिश फिर पानी की दीवार को पत्थर से तोड़ने कि तरह है .