रखदो चटके शीशे के आगे मन का कोई खूबसूरत कोना ,यह कोना हर एक टुकड़े में नज़र आये गा |
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बुधवार, 15 सितंबर 2010
खारिज
मैंने सपने में भी
दंश को चुभने की इजाजत न दी
और तुमने मुझे
सरेराह छलनी कर दिया ,
अब कहते हो , मुझे माफ़ करो |
सम्बोधन की दुहाई दे कर
आत्मा को पी जाने वाले
हे काठ पुरुष !
तुम्हे तरलता , सरलता से क्या सरोकार ?
तुम्हे तुम्हारी निजता प्यारी है
फिर ये सेंधमारी क्यों ?
तुम सूखे हुए, जल का ,एक दाग हो
जिसे गीले कपड़े से पोछ के छुड़ाना है |
तुम चाहते हो , तुम्हे मेरी अपनी सम्वेदनाओं की तह तक
पहुचाने के लिए
मुझे मेरे अपने ही मरुस्थल से गुजरना पड़े |
ये कैसी शर्त है ?
जाओ ,चले जाओ |
अब मै अपनी छाती में
बारिश की बूंदें भरुंगी |
एक महासागर बनाउंगी
और अपने मरुस्थल में
एक पौधा भी रोपूंगी
जिसकी छाँव से तुम्हे अभी से वर्जित करती हूँ |
जाओ जाओ !
इसी पल से मै तुम्हे अपने मरुस्थल से मुक्त करती हूँ ,
जाओ ! तुम्हे सिरे से खारिज करती हूँ |
गुरुवार, 9 सितंबर 2010
दो टूक बातें ------[निराशा से ]
एक ----
बेशक मै चौहद्दी की इक ईट हूँ
मगर बहुत मजबूत हूँ |
मुझे भेद के घर के आंगन में
तांडव का मन ना बनाओ ,
तुम्हारे हर प्रहार का मुह तोड़ जवाब हूँ
बस ! वहीं ठहरो , वहीं ठहर जाओ |
दो ---
सुनहरी रेत की तरह
इस पार से उस पार तक
फैली उजली हंसी ने
कमरे में पसरे मौन से पूछा
ये चुप सी क्यों लगी है
अजी ! कुछ तो बोलिए |
तीन ----
ना तुम बुरी हो ना हम बुरे हैं ,
गर हैं तो ख्यालात बुरे हैं |
आओ इससे निज़ात पाने की कोशिश करें ,
मै मुतमइन हूँ , सुबह होगी जरूरहोगी |
चार ----
हाँ ! मुझे उमीदों से मुहब्बत करनी है ,
इस जज़्बे में घुस के मुहब्बत करनी है |
वो जो कोई बात तेरे लब पे आ के ठहरी है
उसे सरेराह , सरेआम करनी है
ताकि ताकीद रहे तुम फिर इधर का
कभी रुख ना करो
हाँ , कभी रुख ना करो |
बेशक मै चौहद्दी की इक ईट हूँ
मगर बहुत मजबूत हूँ |
मुझे भेद के घर के आंगन में
तांडव का मन ना बनाओ ,
तुम्हारे हर प्रहार का मुह तोड़ जवाब हूँ
बस ! वहीं ठहरो , वहीं ठहर जाओ |
दो ---
सुनहरी रेत की तरह
इस पार से उस पार तक
फैली उजली हंसी ने
कमरे में पसरे मौन से पूछा
ये चुप सी क्यों लगी है
अजी ! कुछ तो बोलिए |
तीन ----
ना तुम बुरी हो ना हम बुरे हैं ,
गर हैं तो ख्यालात बुरे हैं |
आओ इससे निज़ात पाने की कोशिश करें ,
मै मुतमइन हूँ , सुबह होगी जरूरहोगी |
चार ----
हाँ ! मुझे उमीदों से मुहब्बत करनी है ,
इस जज़्बे में घुस के मुहब्बत करनी है |
वो जो कोई बात तेरे लब पे आ के ठहरी है
उसे सरेराह , सरेआम करनी है
ताकि ताकीद रहे तुम फिर इधर का
कभी रुख ना करो
हाँ , कभी रुख ना करो |
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