औरत एक तवा है | अपनी पीठ को तेज आंच से जलाती है और दूसरी तरफ अपने पेट पर छोटी छोटी , गोल गोल , सफेद सफेद रोटियां सेकती है | ये आंच जब जरूरत से कहीं ज्यादा हों जाती है तो रोटी से भाप की शक्ल मै निकल कर उस तवे के जिस्म को ही जला देती है | आंच का सही तापमान बहुत जरूरी है इससे न तवा जलेगा और ना रोटी | इसमें चिमटे की भूमिका को भी नजरंदाज नही किया जा सकता है | तवे की पीठ तो जल ही रही है पेट ना भाप से जले इसके लिए रोटी को उलटना पलटना जरूरी होता है उसके कच्चेपन को धीमे धीमे सेकना पड़ता है तभी ये रोटियां अपने पूरे सौन्दर्य और पौष्टिकता के साथ पवित्र आहार बनती है , अपनी अस्मिता ग्रहण करती है | तवे और चिमटे दोनों की जिम्मेदारी होती है कि वो रोटी को भोज्य बनाये ना कि भोग्य |
रखदो चटके शीशे के आगे मन का कोई खूबसूरत कोना ,यह कोना हर एक टुकड़े में नज़र आये गा |
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शुक्रवार, 28 जनवरी 2011
परवरिश
औरत एक तवा है | अपनी पीठ को तेज आंच से जलाती है और दूसरी तरफ अपने पेट पर छोटी छोटी , गोल गोल , सफेद सफेद रोटियां सेकती है | ये आंच जब जरूरत से कहीं ज्यादा हों जाती है तो रोटी से भाप की शक्ल मै निकल कर उस तवे के जिस्म को ही जला देती है | आंच का सही तापमान बहुत जरूरी है इससे न तवा जलेगा और ना रोटी | इसमें चिमटे की भूमिका को भी नजरंदाज नही किया जा सकता है | तवे की पीठ तो जल ही रही है पेट ना भाप से जले इसके लिए रोटी को उलटना पलटना जरूरी होता है उसके कच्चेपन को धीमे धीमे सेकना पड़ता है तभी ये रोटियां अपने पूरे सौन्दर्य और पौष्टिकता के साथ पवित्र आहार बनती है , अपनी अस्मिता ग्रहण करती है | तवे और चिमटे दोनों की जिम्मेदारी होती है कि वो रोटी को भोज्य बनाये ना कि भोग्य |
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