रखदो चटके शीशे के आगे मन का कोई खूबसूरत कोना ,यह कोना हर एक टुकड़े में नज़र आये गा |

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गुरुवार, 16 दिसंबर 2010

शर्म आती है

हम उस समाज मै खड़े हैं जहाँ
एक जिस्म के बहत्तर टुकड़े हुए हैं और
कुछ दिनों बाद हम सब आदतन   गायेंगे हैप्पी न्यू इयर 
तेजाब से चेहरे झुलसाये गये है और
हम सब आदतन  गायेंगे  हैप्पी न्यू इयर  
ब्लेड से गले  रेते  गये है और 
हम सब गायेंगे  हैप्पी न्यू इयर
कार मै रौंदी गई हैं अस्मत और 
हम सब गायेंगे हैप्पी न्यू इयर
पालीथीन मै लटकी ज़िंदा मिली है नन्ही जान और 
हम सब आदतन गायेंगे हैप्पी न्यू इयर 
उनसे पूछो जिनके घरों के है ये हादसे 
वो बतलायेंगे उनके लिए सिसकियों मै डूबा 
कैसा होगा आने वाला ये न्यू इयर 
कौन इनके दर्द को महसूस करेगा इकत्तीस की रात को 
सब जो डूबे होंगे जश्न मै इकत्तीस की रात को . 
सच ! मन बहुत दुखी है और 
ऐसे अमानवीय समाज का हिस्सा होने पर 
खुद पे शर्म आती है |