जिस्म तर बतर हैं और शाख है कि टूटती नहीं
इनकी जकड़न से कुछ तो सीखो जबान पे लड़ने वालो
मिट्टी,खुश्बू, हवा और पानी कोई फर्क है और कितना
खून का रंग भी वही है और लाश का वज़न भी उतना
गेहूं की बालियाँ नहीं पूछतीं रोटी पकेंगी कहाँ
तो तुम कौन होते हो इसे तोड़ने और बांटने वाले
सरहद की लड़ाई क्या कम थी कि हम आपस में लड़ने लगे
दो रोटी हम खाते है दो रोटी तुम भी खाते हो
इन उलझे हुए धागों को सहजे से खोलो,खोलने वालो
इल्म ना हो और गांठ भी खुल जाये तो कोई बात है
कलम की धार से खून नही बहता पर असर होताहै
सन चौरासी का क़र्ज़ है,साथ आओ लिखने वालो