रखदो चटके शीशे के आगे मन का कोई खूबसूरत कोना ,यह कोना हर एक टुकड़े में नज़र आये गा |

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शुक्रवार, 31 दिसंबर 2010

बाल नव वर्ष और समय के बीच सम्वाद

'' मै समय हूँ |  
मै जब चाहे करवट बदल सकता हूँ ,
स्याह को सफेद और सफेद को स्याह कर सकता हूँ '' | 

बाल नव वर्ष बोला ''तब तो तुम बड़े बलवान हों | 
जो बलवान होता है वो समर्थ होता है , 
मुझे साल भर की खुराक के लिए जो चाहिए वो दोगे ? '' 

समय ने पूछा '' हाँ, हाँ ,क्यों नही | बोलो क्या चाहिए ? '' 

नन्हा नववर्ष बोला ''मै बच्चा हूँ |
  मुझे रक्त , हिंसा , मारकाट वैमनस्य ,पाप ,
, छल प्रपंच , दुष्कर्म वैराग्य नही भाता |  
प्यार चाहिए , दुलार चाहिए
खुराक चाहिए , स्वास्थ्य चाहिए
शिक्षा चाहिए , ज्ञान चाहिए
जल चाहिए , प्रकाश चाहिए
भक्ति चाहिए , शक्ति चाहिए
प्रेम चाहिए , अनुरक्ति चाहिए
राग चाहिए , अनुराग  चाहिए
धैर्य चाहिए , विश्वास चाहिए
शंख चाहिए , नाद चाहिए
ऐ समय ! मुझे प्रसाद चाहिए '' |


समय नेजल्दी से  टोका ---
''रुको , रुको ! नन्हे बाल गोपाल
इतनी लम्बी सूची ?
पिछले साल भी तो सब दिया था '' |


नव वर्ष ने आहत स्वर मै कहा --
''हाँ ! दिया था , मानता हूँ | साथ ही शत्रुता का दंश भी !
जिसके जहर से
कितनी माँओं को निपूती किया
 सधवा को विधवा किया
जान को बेजान किया
आगत को ही अनाथ किया
हाँ , समय ! तुमने  तो शर्म को शर्मिंदा कर दिया '' |


समय ने कानों पे हाथ रख के कहा
'' बस,  बस ! अब सुनने की ताब नहीं |
कोशिश  करूंगा ! पूरी कोशिश करूंगा अब मै
तुम्हे वो सब दूँ जिससे तुम मुझ पर गर्व कर सको |
मेरे साथ मिल कर सहर्ष दो कदम चल सको |
मै आज से बल्कि अभी से प्रयासरत होने जा रहा हूँ |
मेरे लिए दुआ करना |
सुना है , बाल मन की प्रार्थना
परमात्मा जल्दी सुन लेता है '' |
आमीन |

गुरुवार, 16 दिसंबर 2010

शर्म आती है

हम उस समाज मै खड़े हैं जहाँ
एक जिस्म के बहत्तर टुकड़े हुए हैं और
कुछ दिनों बाद हम सब आदतन   गायेंगे हैप्पी न्यू इयर 
तेजाब से चेहरे झुलसाये गये है और
हम सब आदतन  गायेंगे  हैप्पी न्यू इयर  
ब्लेड से गले  रेते  गये है और 
हम सब गायेंगे  हैप्पी न्यू इयर
कार मै रौंदी गई हैं अस्मत और 
हम सब गायेंगे हैप्पी न्यू इयर
पालीथीन मै लटकी ज़िंदा मिली है नन्ही जान और 
हम सब आदतन गायेंगे हैप्पी न्यू इयर 
उनसे पूछो जिनके घरों के है ये हादसे 
वो बतलायेंगे उनके लिए सिसकियों मै डूबा 
कैसा होगा आने वाला ये न्यू इयर 
कौन इनके दर्द को महसूस करेगा इकत्तीस की रात को 
सब जो डूबे होंगे जश्न मै इकत्तीस की रात को . 
सच ! मन बहुत दुखी है और 
ऐसे अमानवीय समाज का हिस्सा होने पर 
खुद पे शर्म आती है |

शुक्रवार, 3 दिसंबर 2010

सोच

हम क्योँ नही उबर सके 
अपनी सोच से 
तमाम उम्र गुजर डाली
  इसी सोच में  |
अब तो वक्त भी कह रहा है
तेरी सोच में 
तब्दिली की सख्त जरूरत है |


इस सोच को
यकीन क़ी संकरी  गली बना ,
कोई तो सिरा हासिल होगा |
शर्त है - वो गली संकरी हो 
ना कोई आजूं हो ना  बाजूं हो 
बस तू हो और तेरी जुस्तजू हो |
फिर देख ! 
फिर देख तेरी सोच क्या रंग लाती है ,
नामुमकिन होगा कि
तू वहीं कि वहीं खड़ी रह जाती है |
तुझे खुद ना सुनाई देगी 
दिन 
महीने 
और सालों वाले कैलेंडर की फड फड़ाहट 
क्यों क़ि अपनी रौं में 
बहता हुआ कोई शख्स 
फिर अपने बस में भी नही होता है |