बेशक मै चौहद्दी की इक ईट हूँ
मगर बहुत मजबूत हूँ |
मुझे भेद के घर के आंगन में
तांडव का मन ना बनाओ ,
तुम्हारे हर प्रहार का मुह तोड़ जवाब हूँ
बस ! वहीं ठहरो , वहीं ठहर जाओ |
दो ---
सुनहरी रेत की तरह
इस पार से उस पार तक
फैली उजली हंसी ने
कमरे में पसरे मौन से पूछा
ये चुप सी क्यों लगी है
अजी ! कुछ तो बोलिए |
तीन ----
ना तुम बुरी हो ना हम बुरे हैं ,
गर हैं तो ख्यालात बुरे हैं |
आओ इससे निज़ात पाने की कोशिश करें ,
मै मुतमइन हूँ , सुबह होगी जरूरहोगी |
चार ----
हाँ ! मुझे उमीदों से मुहब्बत करनी है ,
इस जज़्बे में घुस के मुहब्बत करनी है |
वो जो कोई बात तेरे लब पे आ के ठहरी है
उसे सरेराह , सरेआम करनी है
ताकि ताकीद रहे तुम फिर इधर का
कभी रुख ना करो
हाँ , कभी रुख ना करो |